बुधवार, 4 नवंबर 2009

जिंदगी

जिंदगी फ़िर हमें उस मोड़ पे क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।
जिंदगी तेरे हर फ़साने को , मैंने कोशिश किया भुलाने को ।
मेरी आंखों से खून के आंसू , कब से बेताब हैं गिर जाने को ।
मेरे माजी को मेरे सामने क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।
मैंने बस मुठ्ठी भर खुशी मांगी , प्यार की थोड़ी सी ज़मीं मांगी ।
अपनी तन्हाइयों से घबड़ाकर , अपनेपन की कुछ नमीं मांगी ।
क्या मिला- क्या ना मिला फ़िर वो बात याद आई । याद आई वो आँख मेरी भर आई ।
जिंदगी मैंने तेरा रूप देखा , चाँदनी रात में भी धूप देखा ।
कौन कहता है हसीं है ज़िन्दगी , मैंने अब तक उसे कुरूप देखा ।
जिंदगी पाने की हमने बहुत सज़ा पाई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।