बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

कब अइहन परदेशिया खेलब होली

कब अइहन परदेशिया खेलब होली
बिना सजनवा फगुनवा जबुन लागे । केसे लपटी के खेलब होली ।
कब अइहन परदेशिया खेलब होली ।
निरखे डगरिया गुजरिया संवरिया के । अइतन बलम जी खेलती होली ।
कब अइहन परदेशिया खेलब होली ।
बनके बदरिया नजरिया सेजरिया पे । रात भर बरिसे भिंजेला चोली ।
कब अइहन परदेशिया खेलब होली ।
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाईल - 9334414611

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

सुविख्यात रंगकर्मी एवं अभिनेता प्यारे मोहन सहाय को श्रद्धांजलि

थम गया एक दौर ।
रंगकर्म को एक नया आयाम देने वाले प्यारे मोहन सहाय के निधन से एक दौर थम गया । सहाय जी ने न सिर्फ
रंगमंच पर बल्कि फिल्मों , धारावाहिकों ,टेलीफिल्मों एवं रेडियो -नाटकों पर भी गहरी छाप छोड़ी है । कल हमारा है , दामुल ,मृत्युदंड ,मुंगेरीलाल के हसीन सपने आदि को कभी भुलाया नहीं जा सकता ।
प्यारे मोहन सहाय से मेरा काफी करीबी सम्बन्ध रहा है । मेरे लिखे कई धारावाहिकों एवं टेलीफिल्मों में
उन्होंने यादगार भूमिका निभाई है , जैसे - जी हाँ हुजुर ,लेकिन ......., धत तेरे की ,बहु भी बेटी है , रामफल का
गाँव आदि । मेरे द्वारा लिखित और निर्देशित धारावाहिक नेहिया बा अनमोल में स्वतंत्रता सेनानी गंगाधर प्रसाद की भूमिका को उन्होंने जिस खूबसूरती से निभाया ,उसे भुलाया नहीं जा सकता । प्यारे मोहन सहाय की स्मृति
को शत -शत नमन करते हुए मैं उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ ।

सोमवार, 25 जनवरी 2010

बापू ,आ जाते एक बार (२६ जनवरी पर विशेष )

बापू ,आ जाते एक बार । आ जाते तो तुम्हे दिखाता हाल तुम्हारे भारत का ।
दु:शासन से भरा पड़ा है हर चौराहा भारत का ।
माली के ही हाथों गुलशन रोज़ उजाड़े जाते हैं । द्रौपदियों के बसन बदन से रोज़ उतारे जाते हैं ।
कब होगा इन द्रौपदियों का कौरव से उद्धार । बापू ,आ जाते एक बार ।
गीता का उपदेश वो सारा भूल चला है पार्थ आज । गांडीव की प्रत्यंचा पर चढ़ा हुआ है स्वार्थ आज ।
गदा भीम की धरी रह गयी पता नहीं किस कोने में । झुण्ड शकुनियों का तत्पर है बीज कलह का बोने में ।
कुछ ले -दे कर बन गया मांझी तुफानो का यार । बापू , आ जाते एक बार ।
आँखों वाले धृतराष्ट्र तो मिल जायेंगे बहुत यहाँ । किन्तु विदुर सा कहने वाला नहीं रहा कोई शेष यहाँ ।
राम - रहीम की भूमि पूछती है हम भारतवालों से । कब तक आँख चुराओगे तुम जलते हुए सवालों से ।
गर पुरी उत्तर देने को हो जाओ तैयार । बापू आयेंगे सौ बार - बापू आयेंगे सौ बार ।
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाईल ---- 9334414611

रविवार, 24 जनवरी 2010

मापतपुरी के भईया इहे बा बिचार (२६ जनवरी पर विशेष )

छबीस जनवरी के फेर आइल तेवहार हो तिरंगा फहरे । गाँव -घर ,हाट-बजार हो तिरंगा फहरे ।
कईसन अजादी बा इ , कईसन सुराज बा । बढे मंहगाई रोज - रोज , काम बा न काज बा ।
भाग नाही बदले भले बदले सरकार हो तिरंगा फहरे । गाँव - घर , हाट - बजार हो तिरंगा फहरे ।
वोट के लोभ लोग के , छोट कई दिहलस । जात के पचड़ा मन के कोठ कई दिहलस ।
बहे बस चुनावे भर बिकास के बयार हो तिरंगा फहरे । गाँव - घर , हाट - बजार हो तिरंगा फहरे ।
जीतते बदल जाला मनवा - नजरिया । दिल्ली भेटाते बिसरे गाँवुआ - बधरिया ।
पांच साल बादे अब भेटईहन सरकार ओ तिरंगा फहरे । गाँव - घर , हाट - बजार हो तिरंगा फहरे ।
अबो त खोलीं आँख - अबो त जागीं । जात - धरम के भरम अबो त तियागीं।
कब ले लुटाईब अपने हाथे घर -बार हो तिरंगा फहरे । गाँव -घर , हाट - बजार हो तिरंगा फहरे ।
दुखवा - बिपतिया में जे भी अपना साथ बा । सांच मानी उहे आपन हित - आपन जात बा ।
मापतपुरी के भईया इहे बा बिचार हो तिरंगा फहरे । गाँव - घर , हाट - बजार हो तिरंगा फहरे ।
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाईल -- 9334414611

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

राष्ट्र भाषा का अपमान क्यों

राष्ट्र भाषा किसी भी देश की पहचान है । भारत तो वह देश है जहाँ एक नहीं अनेक भाषाओँ को मात्तरी भाषा का मुबारक दर्ज़ा हासिल है । महाराष्ट्र - सरकार का यह फरमान कि मराठी जानने वाले ही टैक्सी चलाएंगे न तो
उचित है और न ही संगत , यह तो सविधान का भी अपमान है । महाराष्ट्र में रहने वालों को मराठी जाननी चाहिए
यह तो अच्छी बात है ,पर राष्ट्र भाषा हिंदी जानने वालों को देश के किसी भाग में बसने और कारोबार करने पर ऐतराज़ करना कहाँ तक सही है। यह न तो सहनीय है और नहीं उचित । मै अपनी भावना अपनी इस रचना
के द्वारा व्यक्त कर रहा हूँ ----------------------------------------------------
हिंदी को जब वाजिब हक -स्थान मिलेगा । दुनिया में तब ही भारत का मान बढेगा
भाषा के ही धागे से हम एक सूत्र में बंध सकते हैं । भाषा की तासीर से ही हम एक साथ मिल रह सकते हैं ।
भाषा तो एक राष्ट्र -निति है राज -निति ना समझो । भाषा के झगडे में ना उलझाओ ना खुद उलझो ।
हिंदी को जब पटरानी सा मान मिलेगा । दुनिया में -----------------------------------------
तमिल ,मराठी ,उड़िया ,कन्नड़ का यह भेद बेमानी है । हिंदी का मुखालिफ करना सबसे बड़ी नादानी है ।
अलग -अलग हो मातरी भाषाएँ राष्ट्र की भाषा एक हो राह भले हो जुदा -जुदा पर मंजिल अपनी एक हो ।
हम हिंदी हैं जब इसका स्वाभिमान जागेगा । दुनिया में -------------------------------------------
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है - अब भी वक़्त संभलने का है । भाषा -बैर के चक्रब्यूह से अब भी वक़्त निकलने का है
अनेकता में बसे एकता अपना देश वो जन्नत है । फिर कैसा ये बैर भाव है - फिर कैसी ये नफ़रत है ।
दिल और हाथ मिला लें अपना तो यह सफ़र आसान रहेगा । दुनिया में -----------------------
गीतकार --- सतीश मापतपुरी
मोबाईल --9334414611

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

खोतवा में तोता

खोतवा में तोता रोवे मैना अंगनवा । बिधिना ई कईसन लिखल करमवा ।
केकर सराप ह ई , डाह केकर जागल। केकर नजरिया पिरितिया के लागल ।
अंखिया बनल जईसे भादो के बदरिया , लोरवा से भींजल दईबा धानी चुनरिया ।
खोतवा में तोता रोवे मैना अंगनवा । बिधिना ई कईसन लिखल करमवा ।
हँसते -हंसत लोर आँख में समाईअल, करम के पाती हमार कहंवा हेराइल ।
काहें के बिधिना फेर लिहल नयनवा ,बिधिना ई कईसन लिखल करमवा ।
खोतवा में तोता रोवे मैना अंगनवा । बिधिना ई कईसन लिखल करमवा ।
गीतकार - सतीश मापतपुरी , मोबाईल -9334414611

मंगलवार, 12 जनवरी 2010