सारे शिकवे -गिले अब भुला दीजिये,नया साल आ गया मुस्कुरा दीजिये ।
हर खता माफ़ करने की रुत आ गयी,है खफा जो उन्हें फिर मना लीजिए ।
नए साल का हम यू स्वागत करे,आओ सब भूल करके मोहब्त करे ।
नफरतों की दीवारे गिरा दीजिये,नया साल आ गया मुस्कुरा दीजिये ।
कीजिये कामना सबके अपने मिले,सबकी आँखों को सुंदर से सपने मिले ।
दो दिलों में रहे ना कोई दूरियां ,इस तरह दिल को दिल से मिला लीजिये ।
सारी धरती पे खुशियों की बरसात हो, ईद का दिन दिवाली की हर रात हो ।
हमसे हमको न कोई जुदा कर सके, इस तरह हाथ अपने मिला लीजिये ।
नया साल आ गया मुस्कुरा दीजिये । ।
नव वर्ष मंगल मय हो
गीतकार -सतीश मापतपुरी
बुधवार, 30 दिसंबर 2009
बुधवार, 23 दिसंबर 2009
किसान (किसान-दिवस २३दिसम्बर पर विशेष )
धरती,चंदवा,सुरुजवा,गगनवा मिलल ,अउरी का चाही बिहँसत सिवनवा मिलल ।
गिरल देहिया से जहंवा पसीनवा हो राम ,उपजल धरती से तहँवा नागिनवा हो राम।
घाम,सरदी अउरी बरखा पवनवा मिलल ,अउरी का चाही बिहँसत सिवनवा मिलल।
खेत -खरिहान चारो तीरथ -धाम बा ,हर -जुआठे किसानन के ईमान बा ।
चईत,फागुन,भदउया ,सवनवा मिलल ,अउरी का चाही बिहँसत सिवनवा मिलल ।
धनिया ढेका के ठेका पे गावे झुमर,माथे बिंदिया बदन सोहे लाली चुनर ।
घरी भर रात जाके सजनवा मिलल ,अउरी का चाही बिहँसत सिवनवा मिलल ।
गीतकार -सतीश मापतापुरी
मो०-9334414611
गिरल देहिया से जहंवा पसीनवा हो राम ,उपजल धरती से तहँवा नागिनवा हो राम।
घाम,सरदी अउरी बरखा पवनवा मिलल ,अउरी का चाही बिहँसत सिवनवा मिलल।
खेत -खरिहान चारो तीरथ -धाम बा ,हर -जुआठे किसानन के ईमान बा ।
चईत,फागुन,भदउया ,सवनवा मिलल ,अउरी का चाही बिहँसत सिवनवा मिलल ।
धनिया ढेका के ठेका पे गावे झुमर,माथे बिंदिया बदन सोहे लाली चुनर ।
घरी भर रात जाके सजनवा मिलल ,अउरी का चाही बिहँसत सिवनवा मिलल ।
गीतकार -सतीश मापतापुरी
मो०-9334414611
शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009
भोजपुरी गीत
राउर एके झलक बा नियामत सनम ,हमके आठो पहरिया भले ना मिलल ।
दूज के चाँद लउकल गनीमत बा ई ,रात भर के अंजोरिया भले ना मिलल ।
हर मोहब्बत के मंजिल कहाँ मिल सकल ,कुछ कली खिल गइल कुछ मुरझा गइल ।
हमरा जियरा में रउरे छबि बा बसल ,ई दीगर बात बा घर भले ना बसल ।
राउर एके झलक बा नियामत सनम ...............................................
साँच मानी सनम मन में कुछ गम न बा ,हमके जे भी मिलल उ भी कुछ कम न बा ।
एक ही छन के संग हमार अवकात बा ,उमर भर के सेजरिया भले ना मिलल ।
राउर एके झलक बा ..........................................................................
गीतकार --सतीश मापतपुरी
दूज के चाँद लउकल गनीमत बा ई ,रात भर के अंजोरिया भले ना मिलल ।
हर मोहब्बत के मंजिल कहाँ मिल सकल ,कुछ कली खिल गइल कुछ मुरझा गइल ।
हमरा जियरा में रउरे छबि बा बसल ,ई दीगर बात बा घर भले ना बसल ।
राउर एके झलक बा नियामत सनम ...............................................
साँच मानी सनम मन में कुछ गम न बा ,हमके जे भी मिलल उ भी कुछ कम न बा ।
एक ही छन के संग हमार अवकात बा ,उमर भर के सेजरिया भले ना मिलल ।
राउर एके झलक बा ..........................................................................
गीतकार --सतीश मापतपुरी
गुरुवार, 3 दिसंबर 2009
सावन का महीना
हसीना तेरे गालों पे पसीना जब भी आता है ।
सही माने में सावन का महीना तब ही आता है ।
न जाने साँस चलने को ही किसने ज़िन्दगी कह दी ।
हसीं जुल्फों की हो जब छांव जीना तब ही आता है ।
जहाँ में मय भी ,मैकश भी ,है साकी भी ,है पैमाने ।
हो मयखाना सनम की आँख पीना तब ही आता है ।
कंहा ईन्कार है पुरी भला सूरज के जलने से ।
मगर जब जलती है शमा सफीना तब ही आता है ।
गीतकार --- सतीश मापतपुरी
मोबाईल -- 9334414611
सही माने में सावन का महीना तब ही आता है ।
न जाने साँस चलने को ही किसने ज़िन्दगी कह दी ।
हसीं जुल्फों की हो जब छांव जीना तब ही आता है ।
जहाँ में मय भी ,मैकश भी ,है साकी भी ,है पैमाने ।
हो मयखाना सनम की आँख पीना तब ही आता है ।
कंहा ईन्कार है पुरी भला सूरज के जलने से ।
मगर जब जलती है शमा सफीना तब ही आता है ।
गीतकार --- सतीश मापतपुरी
मोबाईल -- 9334414611
भोजपुरी गीत
देखिल.....बिधाता कईसन आइल भुचाल बा। अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा ।
राम के जमीन पे कन्हैया के देस में । गाँव -गाँव शकुनी घुमेला कई भेस में ।
तकला पे चारो ओर ईमान के अकाल बा । अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा ।
काहे के दईबा अइसन दुनिया बसवल .... । का सोच दुनिया में अदिमी बनवल ।
मुट्ठी भर आबरू भी एहिजा मोहाल बा । अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा ।
कब ले भरी ये साईं पाप के गगरी । कब ले कफ़न बनी नईहर के चुनरी ।
रात कईसन होखी जब दिन के ई हाल बा । अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा ।
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाईल - 9334414611
राम के जमीन पे कन्हैया के देस में । गाँव -गाँव शकुनी घुमेला कई भेस में ।
तकला पे चारो ओर ईमान के अकाल बा । अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा ।
काहे के दईबा अइसन दुनिया बसवल .... । का सोच दुनिया में अदिमी बनवल ।
मुट्ठी भर आबरू भी एहिजा मोहाल बा । अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा ।
कब ले भरी ये साईं पाप के गगरी । कब ले कफ़न बनी नईहर के चुनरी ।
रात कईसन होखी जब दिन के ई हाल बा । अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा ।
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाईल - 9334414611
बुधवार, 4 नवंबर 2009
जिंदगी
जिंदगी फ़िर हमें उस मोड़ पे क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।
जिंदगी तेरे हर फ़साने को , मैंने कोशिश किया भुलाने को ।
मेरी आंखों से खून के आंसू , कब से बेताब हैं गिर जाने को ।
मेरे माजी को मेरे सामने क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।
मैंने बस मुठ्ठी भर खुशी मांगी , प्यार की थोड़ी सी ज़मीं मांगी ।
अपनी तन्हाइयों से घबड़ाकर , अपनेपन की कुछ नमीं मांगी ।
क्या मिला- क्या ना मिला फ़िर वो बात याद आई । याद आई वो आँख मेरी भर आई ।
जिंदगी मैंने तेरा रूप देखा , चाँदनी रात में भी धूप देखा ।
कौन कहता है हसीं है ज़िन्दगी , मैंने अब तक उसे कुरूप देखा ।
जिंदगी पाने की हमने बहुत सज़ा पाई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।
जिंदगी तेरे हर फ़साने को , मैंने कोशिश किया भुलाने को ।
मेरी आंखों से खून के आंसू , कब से बेताब हैं गिर जाने को ।
मेरे माजी को मेरे सामने क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।
मैंने बस मुठ्ठी भर खुशी मांगी , प्यार की थोड़ी सी ज़मीं मांगी ।
अपनी तन्हाइयों से घबड़ाकर , अपनेपन की कुछ नमीं मांगी ।
क्या मिला- क्या ना मिला फ़िर वो बात याद आई । याद आई वो आँख मेरी भर आई ।
जिंदगी मैंने तेरा रूप देखा , चाँदनी रात में भी धूप देखा ।
कौन कहता है हसीं है ज़िन्दगी , मैंने अब तक उसे कुरूप देखा ।
जिंदगी पाने की हमने बहुत सज़ा पाई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।
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