राष्ट्र भाषा किसी भी देश की पहचान है । भारत तो वह देश है जहाँ एक नहीं अनेक भाषाओँ को मात्तरी भाषा का मुबारक दर्ज़ा हासिल है । महाराष्ट्र - सरकार का यह फरमान कि मराठी जानने वाले ही टैक्सी चलाएंगे न तो
उचित है और न ही संगत , यह तो सविधान का भी अपमान है । महाराष्ट्र में रहने वालों को मराठी जाननी चाहिए
यह तो अच्छी बात है ,पर राष्ट्र भाषा हिंदी जानने वालों को देश के किसी भाग में बसने और कारोबार करने पर ऐतराज़ करना कहाँ तक सही है। यह न तो सहनीय है और नहीं उचित । मै अपनी भावना अपनी इस रचना
के द्वारा व्यक्त कर रहा हूँ ----------------------------------------------------
हिंदी को जब वाजिब हक -स्थान मिलेगा । दुनिया में तब ही भारत का मान बढेगा
भाषा के ही धागे से हम एक सूत्र में बंध सकते हैं । भाषा की तासीर से ही हम एक साथ मिल रह सकते हैं ।
भाषा तो एक राष्ट्र -निति है राज -निति ना समझो । भाषा के झगडे में ना उलझाओ ना खुद उलझो ।
हिंदी को जब पटरानी सा मान मिलेगा । दुनिया में -----------------------------------------
तमिल ,मराठी ,उड़िया ,कन्नड़ का यह भेद बेमानी है । हिंदी का मुखालिफ करना सबसे बड़ी नादानी है ।
अलग -अलग हो मातरी भाषाएँ राष्ट्र की भाषा एक हो राह भले हो जुदा -जुदा पर मंजिल अपनी एक हो ।
हम हिंदी हैं जब इसका स्वाभिमान जागेगा । दुनिया में -------------------------------------------
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है - अब भी वक़्त संभलने का है । भाषा -बैर के चक्रब्यूह से अब भी वक़्त निकलने का है
अनेकता में बसे एकता अपना देश वो जन्नत है । फिर कैसा ये बैर भाव है - फिर कैसी ये नफ़रत है ।
दिल और हाथ मिला लें अपना तो यह सफ़र आसान रहेगा । दुनिया में -----------------------
गीतकार --- सतीश मापतपुरी
मोबाईल --9334414611
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
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