रविवार, 24 जनवरी 2010

मापतपुरी के भईया इहे बा बिचार (२६ जनवरी पर विशेष )

छबीस जनवरी के फेर आइल तेवहार हो तिरंगा फहरे । गाँव -घर ,हाट-बजार हो तिरंगा फहरे ।
कईसन अजादी बा इ , कईसन सुराज बा । बढे मंहगाई रोज - रोज , काम बा न काज बा ।
भाग नाही बदले भले बदले सरकार हो तिरंगा फहरे । गाँव - घर , हाट - बजार हो तिरंगा फहरे ।
वोट के लोभ लोग के , छोट कई दिहलस । जात के पचड़ा मन के कोठ कई दिहलस ।
बहे बस चुनावे भर बिकास के बयार हो तिरंगा फहरे । गाँव - घर , हाट - बजार हो तिरंगा फहरे ।
जीतते बदल जाला मनवा - नजरिया । दिल्ली भेटाते बिसरे गाँवुआ - बधरिया ।
पांच साल बादे अब भेटईहन सरकार ओ तिरंगा फहरे । गाँव - घर , हाट - बजार हो तिरंगा फहरे ।
अबो त खोलीं आँख - अबो त जागीं । जात - धरम के भरम अबो त तियागीं।
कब ले लुटाईब अपने हाथे घर -बार हो तिरंगा फहरे । गाँव -घर , हाट - बजार हो तिरंगा फहरे ।
दुखवा - बिपतिया में जे भी अपना साथ बा । सांच मानी उहे आपन हित - आपन जात बा ।
मापतपुरी के भईया इहे बा बिचार हो तिरंगा फहरे । गाँव - घर , हाट - बजार हो तिरंगा फहरे ।
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाईल -- 9334414611

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